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लेखनी प्रतियोगिता गुनाह -23-Nov-2022

                 गुनाह 


बड़े  मुद्दतों  बाद मोहब्बत  का  ख्वाब  देखा था, 
आंख   क्या   खुली  बस ! आंखों  में   अंधेरा  छा   गया।

इड़क  क्या   किया  तौबा !  गुनाह  कर   दिया ! 
नूर सा  चेहरा   क्या  देखा, आखों  में  अंधेरा   छा  गया।

क्यूं?मैंने गुनाह को दावत दी, जो उसे देख लिया! 
ये गुनाह सगीरा या कबीरा था!आंखों में अंधेरा छा गया।

इश्क किया, बफ़ा किया, क्या मैंने गुनाह किया ? 
जिंदगी को रोशनी समझा तो, आंखों में अंधेरा छा गया।

झूठी  मोहब्बत  का  नशा  उतरा  तो, 'जाकिर' ! 
ख़ुदा-ए-खौफ़ दिल में, लबों पे माफी! आँखों में अंधेरा छा गया। 


# दैनिक प्रतियोगिता हेतू।

विषय - स्वैच्छिक।

ज़ाकिरहुसेन।

मुंबई।



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5 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 11:32 AM

Nice

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Zakirhusain Abbas Chougule

24-Nov-2022 10:20 AM

Thanks Sandesh Kumar ji

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Abhinav ji

24-Nov-2022 09:17 AM

Very nice👍

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Zakirhusain Abbas Chougule

24-Nov-2022 10:18 AM

Thanks Abhinav ji

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